Sunday, 16 December 2018

| क्यों होता है मलेरिया | और कितने प्रकार का होता है?

क्या है मलेरिया | क्यों होता है मलेरिया | और कितने प्रकार का होता है?


मलेरिया  एक बीमारी है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है प्रोटोजोआ जन्तु जगत का फाइलम है  जिसमे सूक्छम परजीवी जीव आते जो की दूसरे जीवो के अन्दर    शरीर में रह कर  बीमारिया   फैलाते है

  इसी में से एक  है प्लासमोडियम जो की मलेरिया का मुख्य करन होता है मलेरिया से पीड़ित वयक्ति को बुखार आता है जो मादा मच्छर एनोफेलीज़ के काटने से होता है  इस मच्छर में एक प्लास्मोडियम नाम का परजीवी पाया जाता है जिसके कारण मच्छर के काटने से ये रक्त में फैल जाता है.  और ये रक्त के माध्यम से से लिवर तक  पहुँच 
के बहुगुणित होते हैं जिससे रक्त की कमी (एनीमिया) हो जाती है   जिससे  चक्कर आना, साँस फूलना,  इत्यादि। इसके अलावा  बुखार, सर्दी, उबकाई और जुखाम जैसी लछढ़  भी देखे जाते हैं। गंभीर मामलों में मरीज मूर्च्छा में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। 

         
maleriya



यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है। प्रत्येक वर्ष यह ५१.५ करोड़ लोगों को प्रभावित करता है तथा १० से ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है
मलेरिया शब्द इटालियन भाषा शब्द माला एरिया से बना है जिसका मतलब है बुरी हवा यह ऐसी बिमारी है जो परजीवी प्लास्मोडियम  जीवअणु के कारण होती है

खोज था अध्यन 

 मलेरिया का सबसे पहले  चीन से मिलता है. सर्वप्रथम इस का अध्ययन चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरिन वैज्ञानिक द्वारा 1980 किया गया था
जब ये किसी व्यक्ति को काटती है, तो उसके खून की नली में मलेरिया के रोगाणु प्लासमोडियम  फैल जाते है. ये परजीवी प्लाज्मोडियम हीमोजॅाइन टॅाक्सिन को मानव शरीर में उत्पादित करता है.

जब ये Liver तक पहुंचते है  तब ये काफी संख्या में बढ़ जाते है. जैसे ही Liver की कोशिका फटती है तो ये रोगाणु व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं और वहां भी इनकी संख्या बढ़ जाती हैं.
लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करने से ये नष्ट हो जाती है और फट जाती है. तब ये रोगाणु प्लासमोडियम दूसरी RBCS पर हमला करते हैं और ये सिलसिला इस तरह से चलता रहता है  जब-जब लाल रक्त कोशिका फटती है तो ये रोगाणु (प्लासमोडियम )व्यक्ति में मलेरिया के लक्षण नज़र आते हैं

मच्छर


मलेरिया परजीवी की प्राथमिक पोषक मादा एनोफ़िलीज़  मच्छर होती है, जोकि मलेरिया का संक्रमण फैलाने में भी मदद करती है। एनोफ़िलीज़  के मच्छर सारे संसार में फैले हुए हैं।
 केवल मादा मच्छर खून से पोषण लेती है,   अतः यह ही वाहक होती है ना कि नर। मादा मच्छर एनोफ़िलीज़ रात को ही काटती है। शाम होते ही यह शिकार की तलाश मे निकल पडती है तथा तब तक घूमती है जब तक शिकार मिल नहीं जाता। यह खड़े पानी के अन्दर अंडे देती है। अंडों और उनसे निकलने वाले लारवा दोनों को पानी की अत्यंत सख्त जरुरत होती है। इसके अतिरिक्त लारवा को सांस लेने के लिए पानी की सतह पर बार-बार आना पड़ता है। अंडे-लारवा-प्यूपा और फिर वयस्क होने में मच्छर लगभग 10-14 दिन का समय लेते हैं। वयस्क मच्छर पराग और शर्करा वाले अन्य भोज्य-पदार्थों पर पलते हैं, लेकिन मादा मच्छर को अंडे देने के लिए रक्त की आवश्यकता होती 


मलेरिया प्लास्मोडियम
मलेरिया प्लास्मोडियम cykil 

मलेरिया के प्रकार 


मलेरिया प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस गण के चार सदस्य मनुष्यों को संक्रमित करते हैं- प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम विवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल तथा प्लास्मोडियम मलेरिये। 

Plasmodium Falciparum :


सर्वाधिक खतरनाक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है, यह मलेरिया के 80 प्रतिशत मामलों और 90 प्रतिशत मृत्युओं के लिए जिम्मेदार होता है इसमें बहुत तेज़ ठण्ड लगती है, सिर में काफी दर्द और उल्टियाँ भी होती हैं.

  • Plasmodium Vivax : अधिकतर लोगों में इसी प्रकार के मलेरिया बुखार को देखा जाता है. वाईवैक्स परजीवी ज्यादातर दिन के समय आता है. यह टर्शियन मलेरिया उत्पन्न करता है जो प्रत्येक तीसरे दिन अर्थात 48 घंटों के बाद प्रभाव प्रकट करता है.इसके लक्षण है कमर, सिर, हाथ, पैरों में दर्द, भूख ना लगना, ढण्ड के साथ तेज बुखार का आना आदि.
  • Plasmodium Ovale : यह भी मलेरिया उत्पन्न करता है.
  • Plasmodium malariae): यह क्वार्टन मलेरिया उत्पन्न करता है, जिसमें मरीज को हर दिन बुखार आता है, जब किसी व्यक्ति को ये रोग होता है तो उसके यूरिन से प्रोटीन जाने लगता है जिसके कारण शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है और सूजन आने लगती है.
  • Plasmodium knowlesi : यह आमतौर पर दक्षिणपूर्व एशिया में पाया जाने वाला एक प्राइमेट मलेरिया परजीवी है. इसमें भी ठण्ड लगकर बुखार आता है,

  • मलेरिया रोग के लक्षण 


  • मांसपेशियों के दर्द,और बुखार के ठीक होने पर पसीने का आना
  •  पेट की परेशानी,
  •  उल्टीयों का आना
     बेहोशी का होना
  •   ठंड लगकर बुखार का आना .
    थकान, सरदर्द
  •  नियंत्रण एवं रोकथाम 

मच्छरों के प्रजनन स्थलों को जैसे जहां एकठा होता है इसे स्थानों को नष्ट करके मलेरिया पर बहुत नियंत्रण पाया जा सकता है। 
खड़े पानी में मच्छर अपना प्रजनन करते हैं, ऐसे खड़े पानी की जगहों को ढक कर रखना, सुखा देना या बहा देना चाहिये या पानी की सतह पर तेल डाल देना चाहिये, जिससे मच्छरों के लारवा सांस न ले पाएं। 
इसके अतिरिक्त मलेरिया-प्रभावित क्षेत्रों में अकसर घरों की दीवारों पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है। 
अनेक प्रजातियों के मच्छर मनुष्य का खून चूसने के बाद दीवार पर बैठ कर इसे हजम करते हैं। ऐसे में अगर दीवारों पर कीटनाशकों का छिड़काव कर दिया जाए तो दीवार पर बैठते ही मच्छर मर जाएगा, किसी और मनुष्य को काटने के पहले ही। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में छिडकाव के लिए लगभग 12 दवाओं को मान्यता दी है। इनमें डीडीटी के अलावा परमैथ्रिन और डेल्टामैथ्रिन जैसी दवाएँ शामिल हैं, खासकर उन क्षेत्रों मे जहाँ मच्छर डीडीटी के प्रति रोधक क्षमता विकसित कर चुके है। साथ ही साथ इस को रोकने के लिए हर देश अपनी पूरी कोशिस कर रहा जिससे जल्द से जल्द इस पर नियंत्रण पाया जा सके आज के टाइम में प्रति वर्ष २० लाख लोगो की मृत्यु केवल भारत मई हो जाती हे 




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